संकट के सारथी:उज्जैन का चरक अस्पताल दे रहा है मरीजों को फाइव स्टार सुविधाएं

पहले हल्का बुखार, हाथ, पैरों में दर्द, खांसी भी। मैंने इसे कैजुअल लिया, सोचा थकान है। वायरल होगा। मेडिकल से पैरासिटामॉल ले ली। पर बुखार उतरने, चढ़ने का सिलसिला जारी रहा। 19 अप्रैल को लगा मुझमें जरा भी जान नहीं है। चेक कराया तो मेरा ऑक्सीजन लेवल 90 से नीचे था। ऑक्सीमीटर की सच्चाई ने मुझे थरथरा दिया। आंखों के सामने बुजुर्ग माता-पिता, बेटी, भैया, भाभी पूरा परिवार घूम गया। सीटी स्कैन की रिपोर्ट में संक्रमण की पुष्टि के बाद लगा कि सबकुछ खत्म हो गया।

कारण अस्पतालों में बेड की किल्लत की खबरें रोज ही पढ़ रहा था। इंजेक्शन, दवा, ऑक्सीजन की मारामारी के वाकिया चलचित्र की माफिक मेरे आंखों के सामने थे। बेड के लिए पहली कोशिश निजी अस्पतालों में की। मगर नहीं मिला। अचानक किसी देवदूत की तरह उन्हेल के गौरव धाकड़ मेरे मित्र का कॉल आया, बोले- चरक में एक बेड की व्यवस्था है। निजी अस्पताल तो फुल है। 19 अप्रैल को ही रात डेढ़ बजे मुझे चरक अस्पताल में लाकर गौरव ने एडमिट करा दिया। पर मैं आश्वस्त नहीं था। सोच रहा था सरकारी अस्पताल नरक के समान है। यहां मेरी मौत निश्चित है।

एक ही दिन में बदल गई धारणा

20 अप्रैल की सुबह 9 बजे मेरी इस धारणा पर एक नर्स ने प्रहार सा किया। बोली… भैया आपको कैसा लग रहा है। कोई भी परेशानी हो तो संकोच मत करना, तत्काल बताना, हम सब यहीं है। थोड़ी देर में पौष्टिक नाश्ते की प्लेट, फिर दोपहर में घर जैसा भोजन, दाल, चावल, रोटी, सब्जी और साथ में रसगुल्ला भी। मन विश्वास करने को राजी नहीं था। मगर रात में भी दलिया, खिचड़ी, फिर दूसरे दिन सुबह फल, नाश्ता। मैंने फिर दिमाग को झटका, सोचा ये सब तो सरकार दे रही है। कौन सा एहसान कर रहे हैं। मगर अचानक से 22 को मैं ऑक्सीजन पर आ गया। तब स्टाफ से लेकर डॉक्टर तक की चिंता ने मेरी आंखें खोल दी।

मैंने सोचा मेरे मित्र के कारण मुझे ज्यादा अटेंशन मिल रहा है। मगर जब आसपास नजरें दौड़ाई तो हर मरीज यहां के डॉक्टर, स्टाफ के लिए समान था। बातें और भी…पर कहानी लंबी हो जाएगी। बस इतना कहना चाहता हूं कि सरकारी अस्पताल को अंडर स्टीमेट न करें। मैं 28 को घर लौट आया हूं। घर में दिवाली सा माहौल है। मेरी चार महीने की बेटी अनवी, पत्नी दीपिका, भैया राहुल, पापा और मम्मी…सब मेरे पास हैं।

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